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बजट में नौकरीपेशा को आयकर में राहत संभव

नईदिल्ली

मोदी सरकार 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले पेश होने वाले बजट में मध्यम वर्ग और नौकरीपेशा लोगों को आयकर मोर्चे पर कुछ राहत दे सकती है। इसके अलावा, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों का दायरा बढ़ाए जाने की भी संभावना है। जाने-माने अर्थशास्त्री और शोध संस्थान सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज के चेयरमैन सुदिप्तो मंडल ने यह संभावना जतायई है।

नौकरीपेशा लोगों का बड़ा हिस्सा आयकर नहीं देता

आयकर मोर्चे पर मध्यम वर्ग और नौकरीपेशा लोगों को बजट में कुछ राहत मिलने की उम्मीद पर मंडल ने कहा कि वास्तव में नौकरीपेशा लोगों का बड़ा हिस्सा आयकर नहीं देता। केवल उच्च मध्यम वर्ग और धनाढ़्य लोगों का छोटा तबका ही आयकर देता है। इसलिए व्यक्तिगत आयकर के प्रावधानों में किसी भी बदलाव का एक बड़े तबके पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसके अलावा, वैश्विक मानकों के अनुसार हमारी व्यक्तिगत आयकर दरें बहुत अधिक नहीं हैं। उन्होंने कहा कि हालांकि, बहुत हद तक संभव है कि वित्त मंत्री छूट सीमा (कर स्लैब और निवेश सीमा) या मानक कटौती को बढ़ाकर कुछ राहत देने की घोषणा करेंगी। उन्होंने कहा कि करदाताओं के दृष्टिकोण से प्रत्यक्ष कर संहिता के जरिये आयकर प्रावधानों को सरल बनाना ज्यादा महत्वपूर्ण होगा।

होम लोन पर छूट सीमा बढ़ने की उम्मीद

मंडल ने कहा कि रियल्टी क्षेत्र अभी लंबी अवधि के बाद पटरी पर आना शुरू हुआ है। साथ ही यह रोजगार बढ़ाने वाला क्षेत्र है। ऐसे में अगर होम लोन को लेकर ब्याज भुगतान पर छूट की सीमा बढ़ायी जाती है, तो यह स्वागतयोग्य कदम होगा। केप्री ग्लोबल कैपिटल लिमिटेड के प्रबंध निदेशक राजेश शर्मा ने कहा कि सरकार को पीएमएवाई क्रेडिट-लिंक्ड सब्सिडी स्कीम के जरिए बढ़ी हुई फंडिंग के जरिए सस्ते आवास को बढ़ावा देना जारी रखना चाहिए।

बीमा क्षेत्र को बड़ी राहत की आस

आईसीआईसीआई लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस के एमडी-सीईओ भार्गव दासगुप्ता का कहना है कि बीम पॉलिसी मुश्किल समय में जिस तरह उपभोक्ताओं के काम आती है उसको देखते हुए इस बार बजट में पहले से ज्यादा टैक्स छूट की उम्मीद है। इससे एक बड़ी आबादी तक बीमा की पहुंच बढ़ाने में मदद मिलेगी। कोटक जनरल इंश्योरेंस के वितरण प्रमुख जगजीत सिद्धु का कहना है कि जीवन बीमा पॉलिसी को धारा 80सी से अलग कर सकती है। साथ ही स्वास्थ्य बीमा पर टैक्स छूट बढ़ा सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना के बाद स्वास्थ्य पर खर्च में वृद्धि हुई है।

विनिवेश की सूची घटा सकती है सरकार

सूत्रों का कहना है कि वित्त मंत्रालय अगले वित्त वर्ष में निजीकरण की सूची में और कंपनियों को जोड़े जाने के पक्ष में नहीं है। उनका कहना है कि चालू वित्त वर्ष लगातार चौथा साल रहने वाला है जबकि सरकार अपने विनिवेश लक्ष्य से चूकेगी। चालू वित्त वर्ष में सरकार ने विनिवेश से 65,000 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा था। हालांकि, अबतक उसे सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में अल्पांश हिस्सेदारी बेचकर सरकार केवल 31,106 करोड़ रुपये ही जुटा पाई है।

छोटे उद्योगों को स्टार्टअप की तरह मदद

स्टार्टअप के लिए नई पहले भारत में 100 से अधिक यूनिकॉर्न ( आठ हजार करोड़ रुपये ) स्टार्टअप हो गए हैं। भारतीय युवा शक्ति ट्रस्ट की प्रबंध ट्रस्टी लक्ष्मी वेंकटरमण वेंकटेशन का कहना है कि देश में 6.3 करोड़ से अधिक एमएसएमई में से करीब 94 फीसदी सूक्ष्म उद्यम हैं। इनमें से कई अकेले व्यक्ति के दम पर चलने वाले बहुत छोटे व्यवसाय हैं। इन्हें केवल पूंजी की नहीं बल्कि बदलते वक्त के मुताबिक कारोबारी सुझाव और बाजार तक पहुंच बढ़ाने के लिए भी सरकार से सहयोग चाहिए। बजट में इसको लेकर ऐलान की उम्मीद है।