भारतीय यूनिकॉर्न टिकाऊ और भरोसेमंद रोजगार देने में फिसड्डी, 23 फीसदी स्टार्टअप केवल मुनाफा कमा रहे हैं
नई दिल्ली।
स्टार्टअप के मामले में भारत दुनिया के शीर्ष देशों में शामिल है। यहां 10 दिन पर एक स्टार्टअप यूनिकार्न बन जाता है यानी उसकी पूंजी 7600 करोड़ रुपये से अधिक (एक अरब डॉलर) हो जाती है, लेकिन बात जब रोजगार के मोर्चे पर आती है तो वह बड़ी कंपनियों के मुकाबले फिसड्डी साबित होते जा रहे हैं। पिछले पांच साल में भारत में 100 यूनिकार्न मिलकर टीसीएस के मुकाबले आधा रोजगार भी नहीं दे पाए हैं। वहीं अब छंटनी का दौर भी शुरू हो चुका है। वित्त और शिक्षा क्षेत्र में सबसे अधिक स्टार्टअप हैं, लेकिन केवल शिक्षा क्षेत्र के स्टार्टअप (एडुटेक) ही बेहतर कर पा रहे हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था में उथल-पुथल और दुनिया के केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरें बढ़ाने के बाद स्टार्टअप के लिए नई पूंजी जुटाना भी मुश्किल हो रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि स्टार्टअप के लिए आने वाले समय में चुनौतियां बढ़ सकती हैं। जबकि सरकार ने 10 से अधिक कर्मचारियों वाली कंपनियों को भी ईपीएफओ में पंजीकरण अनिवार्य कर दिया है। ऐसे में स्टार्टअप में नौकरी करने वाले ज्यादातर कर्मचारियों को बीमा और पेंशन से जुड़ी सुविधाओं का लाभ नहीं मिल रहा है।
स्टार्टअप में औसत वेतन बेहद ऊंचा है, लेकिन नौकरी के साथ सामाजिक सुरक्षा के पैमाने पर वह फिसड्डी साबित हो रहे हैं। देश में 100 यूनिकार्न की कुल नौकरियों में केवल 10 फीसदी ईपीएफओ में पंजीकृत हैं। देश में 100 स्टार्टअप ने कुल मिलाकर अभी तक केवल 28 लाख रोजगार दिया है, जिसमें केवल 2.72 लाख ईपीएफओ में पंजीकृत हैं। जबकि देश की सबसे बड़ी आईटी कंपनी टीसीएस के कर्मचारियों की संख्या 5.92 लाख है और सभी ईपीएफओ में पंजीकृत हैं। टीसीएस ने पिछले साल एक लाख से अधिक लोगों को रोजगार दिया। वहीं जौमैटो के साथ 3.16 लाख डिलीवरी पार्टनर जुड़े हुए हैं।
कौन कितना दे रहा रोजगार
यूनिकार्न स्टार्टअप में शिक्षा क्षेत्र से जुड़ा बॉयजू ने सबसे अधिक 58 हजार रोजगार दिया है। इसके बाद डिल्वीवेरी ने करीब 20 हजार लोगों को रोजगार दिया है। पीटीएम, पॉलिसी बाजार, फ्लिपकार्ट, जोहो आदि प्रत्येक ने 10 हजार से अधिक रोजगार दिया है। इसी तरह रिवल फूड्स, फाइव स्टार,अनएकेडमी और नोब्रकोकर ने पांच से 10 हजार के करीब रोजगार दिया है