प्रयागराज: हॉस्टल की लड़कियों को नहाते हुए देखता था युवक, कैसे मिली फौरन जमानत?

प्रयागराज
गर्ल्स हॉस्टल के बाथरूम में स्पाई कैमरे से रिकॉर्डिंग करने के आरोपी डॉक्टर पुत्र आशीष खरे को फौरन जमानत मिलने से पुलिस पर कई गंभीर सवाल उठ रहे हैं। महिला संबंधी अपराध में पुलिस की लचर कार्रवाई को लेकर पूरे शहर में चर्चा छिड़ी है। कानूनविदों के शहर में अधिवक्ता भी पुलिस की कार्य प्रणाली पर सवाल उठा रहे हैं।
कानून के जानकारों का कहना है कि पुलिस ने बेटियों की सुरक्षा से जुड़े मसले पर संजीदगी नहीं दिखाई। बेहद फौरी कार्रवाई और तहरीर के आधार पर कमजोर धाराएं लगने से आरोपी को जमानत मिल गई। अधिवक्ता विकास गुप्ता का कहना है कि संगम नगरी को शर्मसार करने वाले मामले में पुलिस को नारी अशिष्ट रूपण निषेध अधिनियम की धारा लगानी चाहिए थी। इसके तहत अगर कोई भारतीय महिला की छवि खराब करने की चेष्टा करता है, उनकी सुंदरता गलत ढंग या अश्लील रूप में पेश करता है तो पुलिस उसे बिना रिमांड गिरफ्तार कर सकती है। यह अधिनियम 1986 पारित हुआ था।
वहीं, वकीलों का कहना था कि आरोपी पर सख्त कार्रवाई के लिए रिमांड बनवाने की जगह पुलिस को कस्टडी रिमांड का आवेदन करना चाहिए था। पुलिस कह सकती थी कि आरोपी को हिरासत में लेकर पूछताछ करनी है। बरामद कंप्यूटर, मोबाइल और हार्ड डिस्क की जांच करनी है। इसकी जांच के लिए आरोपी से पासवर्ड जानने की भी जरूरत होगी। पुलिस यह तर्क भी दे सकती थी कि जल्द से जल्द पता लगाना है कि फोटो और वीडियो कहीं शेयर तो नहीं किए गए। कैमरा लगाने वाले को पकड़ने के लिए भी आरोपी को कस्टडी रिमांड पर लेने का तर्क भी था। कानूनविदों के मुताबिक पुलिस के पास कस्टडी रिमांड लेने का एक नहीं कई बड़ा आधार था।