पेटेंट खत्म होते ही 10 गुना घटे दवाओं के दाम, कम हुआ मरीजों पर बोझ
बरेली
फार्मा कंपनियों का पेटेंट खत्म होते ही उस दवा के दाम 10 से 15 गुना कम हो गए हैं। इससे मरीजों को बड़ी सहूलियत मिली है। खासकर डायबिटिज, ब्लडप्रेशर और हृदयरोग से पीड़ित मरीजों को, जिनको रोजाना ही दवा का सेवन करना पड़ता है। पेटेंट कराने वाली अधिकांश कंपनियां विदेशी हैं, जो जरूरतमंद मरीजों से कई गुना अधिक कीमत वसूल रही थीं। पेटेंट खत्म होने के बाद उसी दवा को दूसरी फार्मा कंपनियों में कई गुना कम दाम पर बाजार में बेच रही हैं। पेटेंट के नाम पर खुली वसूली का खेल अधिकतर उन दवाओं में होता है, जिनके मरीजों की संख्या अधिक होती है। जैसे डायबिटिज, ब्लड प्रेशर, हृदयरोग से पीड़ित मरीजों को प्रतिदिन ही दवा का सेवन करना होता है। डायबिटिज से पीड़ित मरीजों की दवा लिनाग्लिप्टीन का विदेशी फार्मा कंपनी ने पेटेंट कराया था और यह दवा 51.5 रुपये में एक गोली मिल रही थी। जब पेटेंट खत्म हुआ तो वही दवा 15 रुपये में एक गोली मिलने लगी। यही नहीं, जीलैब फार्मा कंपनी ने यही दवा 3.65 रुपये प्रति गोली बाजार में उतार दी है। इसी तरह विल्डाग्लिप्टीन दवा की एक गोली पेटेंट की वजह से 22 रुपये में मिल रही थी। अब पेटेंट खत्म होते ही यही दवा 1 रुपये प्रति गोली मिल रही है। हाल के दिनों में पेटेंट खत्म होने की वजह से दर्जन भर प्रमुख दवाओ की कीमत घटी है और इसका फायदा सीधे तौर पर मरीज को मिल रहा है।
पेटेंट खत्म होते ही कीमत कम हुई
डायाग्लिफिजिन 5 एमजी – पेटेंट की वजह से विदेशी फार्मा कंपनी इस दवा को 29 रुपये प्रति गोली बेच रही थी। अब 2.5 रुपये प्रति गोली दवा उपलब्ध है।
सेक्साग्लिप्टीन – इस दवा की कीमत भी पेंटेंट खत्म होने की वजह से 43 रुपये प्रति गोली से कम हो गई है। स्थानीय फार्मा कंपनियां यह दवा 6 रुपये प्रति गोली बना रही हैं।
डेबिग्रेटान 110 एमजी – इस दवा का दस गोलियों का पत्ता पहले 718 रुपये में थो जो अब 150 रुपये में उपलब्ध है।
डेबिग्रेटान 150 एमजी – पहले 718 रुपये में दस गोलियों का एक पत्ता ही उपलब्ध था। पेटेंट खत्म होने के बाद अब 10 गोलियां 150 रुपये में मिलने लगी हैं।
रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय को भेजा पत्र
फार्मा कंपनियों का पेटेंट के नाम पर मोटा मुनाफा कमाने का खेल रोकने की कवायद तेज हो रही है। केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट वेलफेयर एसोसिएशन की तरफ से रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय को पत्र भेजा गया है। पेटेंट खत्म होने के बाद कई दवाओं की कीमत कम होने की सराहना की है। साथ ही मांग किया गया है कि फार्मा कंपनियों के पेटेंट को मंजूरी देने से पहले उनकी कीमत पर विचार जरूर किया जाए। साथ ही ऐसी व्यवस्था जरूर हो जिससे पेटेंट वाली दवाओं की कीमत फार्मा कंपनियां मनमाने ढंग से न बढ़ा सकें।
मरीजों के साथ धोखा है अधिक रेट
पेटेंट के समय जो दवा विदेशी कंपनियां 50-60 रुपये में बेचती हैं, वही दवा पेटेंट खत्म होते ही 4-5 रुपये में मिलने लगती है। साफ है, पेटेंट के नाम पर सिर्फ मरीजों को धोखा दिया जा रहा है। डायबिटिज, ब्लड प्रेशर जैसी कई बीमारियां हैं जिसके मरीज लाखों-करोड़ों में हैं। ऐसी बीमारियों की दवाओं की कीमत पर नियंत्रण जरूरी है, भले ही उस दवा के फार्मूले का पेटेंट ही क्यों न हो। – दुर्गेश खटवानी, अध्यक्ष, केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट वेलफेयर एसोसिएशन