पार्षदों के टिकट वितरण को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां तेज

भोपाल

पार्षदों के नामांकन फार्म मिलने और भरे जाने की प्रशासनिक प्रक्रिया के बीच राजनीतिक सरगर्मी में तेजी आने लगी है। दोनों ही प्रमुख दलों ने अपनी अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं। खास बात यह है कि कांग्रेस में जहां विधायक टिकट वितरण के सेंटर में हैँ यानि पार्षद उम्मीदवाराी में इनकी खूब चल रही हैं, वहीं भाजपा के विधायकों से संगठन ने राजधानी में पार्षदों के टिकट वितरण को लेकर अब तक कोई चर्चा नहीं की है। जो भी कवायद चल रही है वह संगठन के स्तर पर चल रही है। अब संगठन द्वारा पैनल बनाने का काम शुरू हो गया है। इस पैनल पर विधायकों से चर्चा की जायेगी। लेकिन विधायकों की मंशा है कि पैनल बनाते समय ही चर्चा हो। ताकि, उनकी पसंद का नाम पैनल में आ सके।

विधायकों की परेशानी इसलिए… दरअसल, भाजपा विधायकों और वे नेता जो विधायक का चुनाव हार गये थे, उनके निवास में पार्षद टिकट के दावेदारों की भीड़ लगती है, इनमें या तो पूर्व पार्षद शामिल हैं, या फिर भाजपा के पुराने कार्यकर्ता। इसलिए विधायक चाहते हैं कि जिला संगठन जो पैनल बना रहा, उस पैनल में उनके नाम शामिल हों, ताकि बाद में जब चर्चा हो तो उन नामों पर भी चर्चा हो सके। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। इन विधायकों का कहना है कि अगर पैनल बनने के बाद चर्चा हुई, तो उनके पसंद के दावेदरों पर कैसे चर्चा होगी ? अगर पैनल में न होने के बाद भी उनके पसंद के उम्मीदवार को टिकट दिया गया तो पैनल बनाने का मतलब ही क्या है। दरअसल, इन विधायकों को आने वाला विधानसभा चुनाव भी दिख रहा है, उगर वह अपने पसंद के उम्मीदवारोंं को टिकट नहीं दिलवा पाये तो उनके कार्यकर्ताओं पर इसका असर पड़ेगा और चुनाव में जमीनी स्तर पर दिक्क्कत आयेगी।

कांग्रेस की लिस्ट पहले आयेगी..
महापौर उम्मीदवार घोषित करने में कांग्रेस भाजपा से आगे निकल गयी है। इसी तरह कांग्रेस में पार्षद उम्मीदवारों की लिस्ट भी पहले आयेगी। क्योंंकि, यहां पर जिला कांग्रेस के साथ-साथ विधायकों से भी एक साथ चर्चा हो रही है, यानि एक साथ वार्ड वार डिस्कशन हो रहा है।

संगठन चाहता है युवा चेहरे…
दरअसल, भाजपा में इस समय बदलाव का दौर है, जिला संगठन में अधिकतर युवा टीम काम कर रही है। संगठन की इच्छा है कि नये-नये ऊर्जावान चेहरों को पार्षदी में मौका दिया जाये। यही कारण है कि इस बार नये नये टिकट के दावेदार ज्यादा नजर आ रहे हैं। लेकिन, इसमें दूसरी परेशानी यह है कि वे नेता जो टिकट की उम्मीद में सालों से काम कर रहे हैं, निराश होकर बागी न हो जायें। अगर ऐसा हुआ तो भाजपा को नुकसान होगा। एक विधायक ने कहा कि ऐसा पहली बार हो रहा है कि अब तक किसी विधायक से इस संबंध में चर्चा नहीं की गई। लेकिन जब कोई उम्मीदवार चुनाव हारेगा तो उसका ठीकरा विधायक पर फोड़ा जायेगा।

वार्ड बदलने वालों को मौका मुश्किल
नगर निगम के आरक्षण में 81 पार्षदों के वार्ड बदल गए हैं, इसलिए इनकी इच्छा है कि इन्हें पड़ोस के वार्ड से टिकट मिल जाए। कांग्रेस में तो इसपर कुछ हद तक सहमति बनती दिख रही है लेकिन भाजपा में ऐसा होना मुश्किल लग रहा है। पैनल में भी इन नामों को अपेक्षित तवज्जो नहीं मिल रही है। 4 सीनियर पूर्व पार्षदों को जरूर मौका मिल सकता है। लेकिन इन सब के बीच इन दावेदारों के निर्दलीय मैदान में उतरने की संभावना बन रही है। दो दिन में भाजपा का पैनल तैयार हो जाएगा।

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