मध्य प्रदेश

कोर्ट ने कैंसिल किया 70 लाख रुपये का बीमा क्लेम, दुर्घटना का कोई प्रत्यक्ष साक्षी नहीं होने का नुकसान मृतक के स्वजन को हुआ


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इंदौर
दुर्घटना का कोई प्रत्यक्ष साक्षी नहीं होने का नुकसान मृतक के स्वजन को हुआ। जिला न्यायालय ने उनकी ओर से प्रस्तुत क्लेम प्रकरण निरस्त कर दिया। कोर्ट ने माना कि मृतक के स्वजन दुर्घटना को साबित कर पाते तो उन्हें 14 लाख 60 हजार रुपये क्षतिपूर्ति पाने का अधिकार होता। इंदौर के श्याम नगर एनेक्स निवासी रवि उर्फ सुनील चौहान की सड़क हादसे में मृत्यु हो गई थी। उनके स्वजन ने यह कहते हुए वाहन का बीमा करने वाली कंपनी के खिलाफ 70 लाख रुपये क्षतिपूर्ति का दावा प्रस्तुत किया था कि सुनील वाहन में ड्रायवर के पास बैठे हुए थे और हादसे की वजह से ही उनकी मृत्यु हुई है।

उन्होंने अपनी बात के समर्थन में पांच गवाहों के बयान भी करवाए। बीमा कंपनी की ओर से एडवोकेट मुजीब खान ने गवाहों का प्रतिपरीक्षण किया। इसमें सभी गवाहों ने स्वीकारा कि हादसा उनके सामने नहीं हुआ था इसलिए वे नहीं बता सकते कि हादसे के वक्त रवि उर्फ सुनील वाहन चला रहे थे या चालक के पास की सीट पर बैठे थे। किसी ने भी हादसा होते हुए नहीं देखा था। ऐसे में वे नहीं बता सकते कि किसकी लापरवाही से हादसा हुआ था। न्यायालय ने गवाहों के बयान और एडवोकेट खान के तर्कों से सहमत होते हुए क्लेम प्रकरण निरस्त कर दिया।
 
झूठी साबित हुई आग से बस खाक होने की कहानी
चलती बस में आग लगने से हुए नुकसान के मामले में क्षतिपूर्ति दिलाने से जिला उपभोक्ता आयोग ने इंकार कर दिया। आयोग ने बस मालिक पर हर्जाना भी लगाया है। हर्जाने की रकम बीमा कंपनी को मिलेगी। इंदौर निवासी वीरेंद्र कुमार ने बीमा कंपनी के खिलाफ 37 लाख रुपये की क्षतिपूर्ति और पांच लाख रुपये मानसिक संत्रास के एवज में दिलवाए जाने के लिए परिवाद प्रस्तुत किया था।

इसमें कहा था कि परिवादी ने नई बस खरीदी थी। इसका वैध परमिट था और यह रजिस्ट्रेशन के लिए चित्रकूट जा रही थी कि रास्ते में इसमें आग लग गई और बस जल गई। इससे परिवादी को 45 लाख रुपये का नुकसान हो गया। परिवादी ने बीमा कंपनी से क्षतिपूर्ति की मांग की लेकिन उसने यह कहते हुए क्लेम देने से इंकार कर दिया कि बस का रजिस्ट्रेशन ही नहीं था। आयोग में बीमा कंपनी की तरफ से बताया गया कि वाहन मालिक पुरानी बस की नंबर प्लेट लगाकर नए वाहन को चला रहा था। वाहन मालिक इंदौर निवासी है तो वे बस को रजिस्ट्रेशन के लिए चित्रकूट क्यों ले जाएंगे। इसके अलावा पुलिस रिपोर्ट में भी बस नंबर की पुष्टि हुई है। तर्क सुनने के बाद आयोग ने परिवाद निरस्त कर दिया।


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