AIIMS Bhopal में जेमसिटाबिन इंजेक्शन 2100 में खरीदा गया, जबकि रायपुर AIIMS में यही इंजेक्शन 425 रुपए ……

भोपाल

भोपाल के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में दवाओं की ऊंची कीमतों पर खरीद के आरोपों की जांच के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की एक टीम ने गुरुवार को भोपाल एम्स का दौरा किया. टीम ने दवा खरीद से जुड़े दस्तावेजों की जांच की और एम्स डायरेक्टर डॉ. अजय सिंह सहित प्रबंधन के वरिष्ठ अधिकारियों से करीब चार घंटे तक मुलाकात कर खरीद प्रक्रिया की जानकारी ली. 

यह मामला भोपाल सांसद आलोक शर्मा ने एम्स की स्टैंडिंग फाइनेंस कमेटी की बैठक में उठाया था. सांसद शर्मा ने 'आजतक' से बातचीत में बताया कि सांसद होने के नाते वह स्टैंडिंग कमेटी के सदस्य हैं और उनके पास शिकायत आई थी कि भोपाल एम्स में जेमसिटाबिन (Gemcitabin) इंजेक्शन 2100 रुपए प्रति नग की दर से खरीदा गया, जबकि छत्तीसगढ़ के रायपुर AIIMS में यही इंजेक्शन 425 रुपए और दिल्ली AIIMS में 285 रुपए प्रति नग में खरीदा गया. अन्य दवाओं की कीमतें भी भोपाल एम्स में अन्य एम्स की तुलना में अधिक थीं. 

BJP सांसद शर्मा ने बताया कि 15 मई को दिल्ली के निर्माण भवन में हुई स्टैंडिंग कमेटी की बैठक में केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव पुण्य सलिला श्रीवास्तव मौजूद थीं. इस बैठक में उन्होंने भोपाल एम्स में ऊंची कीमतों पर दवा खरीद की शिकायत की जानकारी दी, जिसके बाद जांच का आश्वासन दिया गया. 

आरोप है कि भोपाल एम्स ने कोरोना काल के बाद से केंद्र सरकार के दवा खरीद नियमों (GFR 2017) का पालन नहीं किया और अमृत फार्मेसी के जरिए सीधे दवाएं खरीदीं. अमृत फार्मेसी से केवल आपात स्थिति में दवाएं खरीदने की अनुमति थी, न कि पूरी सप्लाई के लिए. अन्य सभी एम्स डायरेक्ट टेंडर के जरिए दवाएं खरीदते हैं, लेकिन भोपाल एम्स अकेला ऐसा संस्थान है जो पूरी खरीद अमृत फार्मेसी से करता है और GFR नियमों का पालन नहीं करता. 

लोकसभा सदस्य आलोक शर्मा ने बताया कि अन्य सरकारी अस्पतालों की तरह एम्स में भी टेंडर के जरिए दवा सप्लाई होनी चाहिए, लेकिन कोरोना काल में आपात स्थिति के लिए दी गई सीधी खरीद की मंजूरी का दुरुपयोग हुआ. कोरोना काल खत्म होने के बावजूद सीधी खरीद जारी रही, जिसका आंकड़ा करोड़ों में पहुंच गया. पहले 10-15 लाख की आपातकालीन सप्लाई, कोविड काल में 2-3 करोड़ तक पहुंची, लेकिन पिछले तीन सालों में यह 25-60 करोड़ तक हो गई, जो एक बड़े भ्रष्टाचार का संकेत है. 

इस मामले में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की जांच टीम की ओर की गई कार्रवाई से भोपाल एम्स में दवा खरीद प्रक्रिया में पारदर्शिता और नियमों के पालन की उम्मीद जताई जा रही है.

 

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