चीन में दिखा जयशंकर का दम, नतमस्तक हुआ ड्रैगन, भगवान बुद्ध की बात मानने को तैयार

नई दिल्ली/ बीजिंग 

भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर पांच वर्षों के अंतराल के बाद चीन की पहली यात्रा पर बीजिंग गए हैं. उनकी इस यात्रा का वहां असर भी दिखने लगा है. जयशंकर आज शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के विदेश मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लेने के लिए तिआनजिन जाएंगे और इसी दौरान चीन के शीर्ष नेतृत्व से भी मुलाकात करेंगे.

भारत के साथ सीमा विवाद को लेकर तनातनी दिखाने वाला ड्रैगन अब भगवान बुद्ध की शांति की बात दुहराते हुए अब ‘हाथी’ से दोस्ती की फरियाद करने लगा है. चीनी उपराष्ट्रपति हान झेंग ने जयशंकर के साथ मुलाकात में कहा कि चीन और भारत दोनों प्रमुख विकासशील राष्ट्र हैं और ‘ड्रैगन और हाथी का टैंगो’ (तालमेल) दोनों देशों के लिए फायदेमंद रहेगा. वहीं जयशंकर ने साफ किया कि भारत-चीन संबंधों में निरंतर सुधार ‘आपसी लाभ’ के रास्ते खोल सकता है.

चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने भी बैठक के दौरान कहा कि दोनों देशों को संदेह के बजाय आपसी विश्वास, प्रतिस्पर्धा के बजाय सहयोग और विरोध के बजाय एक-दूसरे की सफलता में योगदान देने की भावना अपनानी चाहिए.

रिश्तों में अब गर्मजोशी की कोशिश

उधर चीनी सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने भारत चीन संबंधों पर लंबा लेख लिखा है. इसने लिखा है कि जयशंकर की यह यात्रा अक्टूबर 2024 में कज़ान में हुई पीएम मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बैठक के बाद द्विपक्षीय संबंधों में दूसरा बड़ा पड़ाव मानी जा रही है.

चीनी मुखपत्र ने लिखा, ‘पिछले पांच वर्षों में भारत-चीन कूटनीतिक संपर्क न्यूनतम रहे हैं. गलवान संघर्ष के बाद दोनों देशों के रिश्तों में तनाव चरम पर पहुंच गया था, लेकिन अब बीजिंग में इस उच्चस्तरीय दौरे को एक ‘सकारात्मक संकेत’ के तौर पर देखा जा रहा है.’

सीमा विवाद अब भी सबसे संवेदनशील मुद्दा

दोनों देशों के बीच रिश्तों में गर्माहट के संकेत मिल रहे हैं, लेकिन सीमा विवाद अब भी सबसे बड़ा और जटिल मसला बना हुआ है. रणनीतिक विश्वास की बहाली, आपसी संवाद को दोबारा शुरू करना और सुरक्षा सहयोग के स्तर पर मजबूत आधार बनाना भविष्य के लिए अहम होंगे.

इसने लिखा है कि सीमा पर भरोसे का स्थायी ढांचा, लोगों के बीच संपर्क, शैक्षणिक और थिंक टैंक संवाद को दोबारा शुरू करना ऐसे व्यावहारिक कदम होंगे जो पारस्परिक विश्वास की नींव को मजबूती देंगे.

मल्टीलेटरल मंचों पर साथ-साथ

SCO और BRICS जैसे बहुपक्षीय मंचों पर भारत और चीन पहले से ही साथ काम कर रहे हैं. अगर ये दोनों देश वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए सामूहिक रणनीति विकसित करें, तो यह ग्लोबल साउथ और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को मजबूती देगा.

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अगर चीन के साथ संबंधों को अपने विकास के नजरिए से देखे और चीन अगर भारत की “कोर चिंताओं” का सम्मान करे, तो रणनीतिक गलतफहमियों को दूर करना और सहयोग के नए अवसर पैदा करना संभव है.

‘बातचीत की खिड़की खुल चुकी है’

अखबार ने लिखा है कि इस समय जब दुनिया एक बार फिर ध्रुवीकृत हो रही है. भारत और चीन का सतत संवाद और परिपक्व कूटनीतिक संपर्क दोनों देशों को न केवल एक-दूसरे को बेहतर समझने में मदद करेगा, बल्कि यह एशिया की स्थिरता और वैश्विक शक्ति संतुलन को भी मजबूत करेगा. जयशंकर की यह यात्रा दोनों देशों के बीच टूटे संवाद को जोड़ने, विश्वास बहाली की दिशा में सार्थक पहल और द्विपक्षीय संबंधों को ‘असामान्य’ स्थिति से ‘सामान्य’ करने का मौका है.

ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि अब गेंद दोनों देशों के पाले में है कि वो सहयोग को प्राथमिकता देते हैं या प्रतिस्पर्धा को… लेकिन दुनिया उम्मीद कर रही है कि भारत और चीन दोनों, मिलकर, स्थिरता और समावेशी विकास की मिसाल पेश करें.

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